ग्वालियर में अभी हाल ही में ही हुए उपचुनाव में मतगणना वाली रात का मामला है। रात करीब 1:30 बजे दो डीएसपी सुरक्षा में लगे थे। तभी उन्होंने सड़क किनारे ठंड से ठिठुर रहे और कचरे में खाना ढूंढ रहे भिखारी को देखा।

उनमे से एक अफसर ने जूते तो दूसरे ने अपनी जैकेट दे देता है. जब दोनों डीएसपी वहां से जाने लगते है तो भिखारी डीएसपी को नाम से पुकाराता है. जिसके बाद दोनों हैरान रह जाते हैं और पलट कर जब गौर से भिखारी को पहचानते है तो वह खुद भी हैरान रह गए क्योंकि भिखारी उनके साथ के बैच का सब इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा था. जो 10 साल से सड़कों पर लावारिस घूम रहा था।
बिगड़ चुका है दिमागी संतुलन
दरअसल मनीष मिश्रा अपना दिमागी संतुलन खो बैठे हैं वह शुरुआत में 5 साल तक घर पर रहे इसके बाद घर में नहीं रुके यहां तक कि इलाज के लिए जिन सेंटर व आश्रम में दाखिल कराया वहां से भी भाग गए थे जो अब सड़कों पर भीख मांग कर अपनी ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं।
थानेदार मनीष मिश्रा का निशाना था अचूक
ग्वालियर के झांसी रोड इलाके में सालों से सड़कों पर लावारिस घूम रहे मनीष साल 1999 पुलिस बैच के अचूक निशानेबाज़ थे. मनीष दोनों अफसरों के साथ 1999 में पुलिस सब इंस्पेक्टर में दाखिल हुए थे. दोनों डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और विजय भदोरिया ने इसके बाद काफी देर तक मनीष मिश्रा से पुराने दिनों की बात की और अपने साथ ले जाने की जिद की जबकि वह साथ जाने को राजी नहीं हुआ. आखिर में समाज सेवी तंज़ीम से उसे आश्रम भिजवा दिया गया जहां उसकी अब बेहतर देखरेख हो रही है।
परिवार के सभी मेंबर अच्छे ओहदों पर हैं तैनात
मनीष मिश्रा के परिवार की बात की जाए तो उनके भाई भी टीआई हैं, पिता व चाचा एडिशनल एसपी से रिटायर हुए हैं. चचेरी बहन दूतावास में तैनात है और मनीष मिश्रा के ज़रिए खुद 2005 तक नौकरी की गई है. आखिरी वक्त तक वह दतिया जिले में तैनात रहे इसके बाद दिमागी संतुलन खो बैठे. पत्नी से उनका तलाक हो चुका है जो अदालती सर्विस में तैनात है. लिहाजा इस सिलसिलाए वारदात से जितने यह अफसर हैरान हुए उतना ही और लोग भी हैरान हो रहे हैं लेकिन खुशी इस बात की है कि अब मनीष ग्वालियर के एक सामाजिक आश्रम में रह रहे हैं और उनका इलाज किया जा रहा है।