बेलगावी कर्नाटक के वयस्क जोड़े के विरुद्ध दर्ज एफआईआर रद्द करते हुए शीर्ष अदालत का स्पष्ट आदेश

नई दिल्ली, सत्य पथिक न्यूज नेटवर्क: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अंतरजातीय विवाह के मामले में युवाओं को अक्सर अपने बड़ों से खतरों का सामना करना पड़ता है और अदालतें इन युवाओं की मदद के लिए आगे आती रही हैं। अंतरजातीय शादियों से शायद जातीय और सामुदायिक तनाव में कमी आएगी।

शीर्ष अदालत की जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हृषिकेश राय की पीठ ने उक्त टिप्पणियां उस एफआईआर को रद्द करते हुए कीं जो कर्नाटक के बेलगावी जिले में एक लड़की के माता-पिता ने दर्ज कराई थी जिसने अपने मर्जी के लड़के से शादी कर ली थी।

पीठ ने कहा कि पुलिस अधिकारियों के लिए आगे बढ़ने का रास्ता यही है कि वे जांच अधिकारियों की काउंसलिंग करें और सामाजिक रूप से संवेदनशील ऐसे मामलों से निपटने के लिए कुछ दिशानिर्देश और प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाएं। इस मामले में लड़का और लड़की दोनों हिंदू हैं और उच्च शिक्षित हैं। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में उम्मीद जताई कि लड़की के माता-पिता इस शादी को स्वीकार करेंगे और न सिर्फ अपनी बेटी से, बल्कि उसके पति से भी सामाजिक संवाद पुनर्स्थापित करेंगे।

पीठ ने कहा कि हमारे विचार से यही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है। जाति और समुदाय की आड़ में बेटी और दामाद को अलग-थलग करना अवांछित सामाजिक कवायद होगी। शीर्ष अदालत ने साफ किया कि अगर दो बालिग शादी करने के लिए राजी हैं तो परिवार, समुदाय या कुल की सहमति लेना जरूरी नहीं है। दोनों बालिगों की सहमति को प्रधानता दी जानी चाहिए।

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