कभी भारत का हिस्सा रहा बांग्लादेश इस साल प्रति व्यक्ति डॉलर आय के मामले में भारत से आगे निकल जाएगा। ऐसे में भारत दूसरा चीन बनने के अपने लक्ष्य से काफी पीछे छूट गया है। यह बात ब्लूमबर्ग के एक कॉलम में कही गई है।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर 5,000 से ज्यादा शब्दों में लिखे गए अपने कॉलम में एंडी मुखर्जी ने कहा कि 2000 के दशक के मध्य में ही भारत को सॉफ्टवेयर और सेमीकंडक्टर डिजाइन से आगे बढ़कर जूते, शर्ट और खिलौनों की मैन्यूफैक्चरिंग पर ध्यान देना चाहिए था, क्योंकि इन क्षेत्रों में थोड़े कम कुशल श्रमिकों को लगाया जा सकता था। शनिवार को ब्लूमबर्ग डॉट कॉम पर प्रकाशित ‘वाय आई एम लूजिंग होप इन इंडिया’ शीर्षक कॉलम में मुखर्जी ने कहा कि स्पेशल इकॉनोमिक जोन (SEZ) के लिए बड़े पैमाने पर भूमि का अधिग्रहण करने की जगह कुछ बड़े एन्क्लेव बनाने चाहिए थे। नोटबंदी और कमियों से भड़े GST ने स्थिति को और खराब किया और अब आत्मनिर्भरता को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अभियान से अर्थव्यवस्था को और नुकसान पहुंच सकता है।
बैंक अकाउंट तो खुले पर अकाउंट बैलेंस की समस्या बनी रही
आलेख के मुताबिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार का मुख्य ध्यान शिक्षा, भोजन, कार्य और सूचना के अधिकार पर था। जबकि मोदी ने आधार से बैंक अकाउंट खोलने, रसोई के ईंधन में जलावन और कोयले की जगह गैस का उपयोग बढ़ाने और गांवों में शौचालय बनवाने पर विशेष ध्यान दिया। हालांकि अकाउंट में बैलेंस, शौचालय में पानी और खाली हुए गैस सिलेंडर को भरवाने के लिए जेब में पैसे की समस्या बनी रही।
टैक्स अधिकारियों का आतंक बढ़ता गया
मोदी कारोबारियों के लिए अनुकूल नीति बनाने और टैक्स आतंक को खत्म करने का वादा के साथ सत्ता में आए थे, लेकिन टैक्स अधिकारियों का आतंक बढ़ता गया। 2016 में उन्होंने अवैध संपत्ति को सामने लाने के नाम पर देश की 86 फीसदी नकदी की मान्यता समाप्त कर दी, जिसके कारण कई सप्ताहो तक लोगों को बेकार नकदी को बैंक में जमा कराने के लिए बैंकों के सामने कतारों में खड़ा रहना पड़ा। मुंबई में उन दिनों महिलाओं द्वारा चलाए जाने वाले एक सूक्ष्म उद्यम ने बताया था कि साड़ियों पर सोने की जड़ी का काम करने का उनका रेट 7,000 रुपए से घटकर 4,000 रुपए पर आ गया था। अंतत: सारे अमान्य नोट बैंक में आ गए और नोटबंदी का कोई फायदा नहीं मिला। हालांकि मोदी की लोकप्रियता लगाातार बढ़ती ही गई।
माहौल में भरोसे की कमी
आज के घरेलू आर्थिक माहौल पर टिप्पणी करते हुए मुखर्जी ने लिखा कि आज होम बायर्स बिल्डर पर भरोसा नहीं करते हैं। फाइनेंशियर्स लोन चुकाने को लेकर प्रॉपर्टी डेवलपर्स पर भरोसा नहीं करते हैं। सरकार फाइनेंशियर्स और बिल्डर दोनों पर भरोसा नहीं करती है। जनता नेताओं पर भरोसा नहीं करती है।
1991 के बाद कुछ विकास हुए
देश की आर्थिक उपलब्धियों के बारे में उन्होंने कहा कि 1991 से पहले चार दशकों में राष्ट्रीय राजमागों का नेटवर्क दोगुना नहीं हो पाया, लेकिन उसके बाद यह चार गुना बढ़ चुका है। 1990 में 65,000 मेगावाट से कम बिजली पैदा होती थी, जो अब बढ़कर 3,75,000 मेगावाट तक पहुंच चुकी है। सोलर और विंड पावर में निवेशकों की रुचि को देखते हुए ऐसा लगता है कि 2030 तक बिना कोई प्रदूषणकारी कोयला बिजली घर बनाए उत्पादन क्षमता और बढ़कर दोगुना हो सकती है।
टेलीकॉम सेक्टर में 3 खिलाड़ी बचे
टेलीकॉम सेक्टर की हालत को लेकर आलेख में कहा गया है कि सरकारी मोनोपॉली खत्म होने के बाद दर्जन भर टेलीकॉम कंपनियों मैदान में आ गई थीं। अब फिर से प्रभावी तौर पर तीन ही बड़ी टेलीकॉम कंपनियां रह गई हैं। उनमें भी एक की हालत खराब है और एक अन्य कंपनी ने कहा है कि वह शायद अगले साल 5जी स्पेक्ट्रम के लिए बोली नहीं लगा पाएगी।
सालाना 1 करोड़ रोजगार पैदा करना होगा
आलेख में कहा गया कि 66 फीसदी के श्रम पार्टिसिपेशन रेट हासिल करने के लिए और 1990 से लेकर 2014 तक चीन की विकास दर की बराबरी करने के लिए भारत को सालाना कम से कम 1 करोड़ रोजगार पैदा करना होगा। साथ ही बढ़ते ऑटोमेशन के बीच रोजगार पैदा करने के लिए सोशल सिक्योरिटी, हेल्थकेयर, चाइल्डकेयर, हाउसिंग और शिक्षा पर बड़े स्तर पर खर्च करना होगा। कोरोना संकट से पहले भी देश के शहरों में हर 5 महिलाओं में से 4 श्रमशक्ति का हिस्सा नहीं थी, जबकि चीन, बांग्लादेश और श्रीलंका की स्थिति इस मामले में भारत से बेहतर है।
2019 में 7,000 हाई नेटवर्थ वाले लोगों ने भारत को छोड़कर दूसरे देश की नागरिकता ले ली
आलेख में कहा गया कि 2016 से 2019 के बीच भारतीयों के बीच यूएस इन्वेस्टर वीजा प्रोग्राम की मांग 400 फीसदी बढ़ी है। ग्लोबल वेल्थ माइग्रेशन रिव्यू के मुताबिक 2019 में 7,000 हाई नेटवर्थ वाले लोगों ने भारत को छोड़कर दूसरे देश की नागरिकता ले ली। यह आंकड़ा 2018 के मुकाबले 2,000 ज्यादा है।
कोरोना संकट से भारत बेहद अकुशल अथॉरिटेरियन तरीके से निपटा
कोरोना संकट के बारे में आलेख में कहा गया कि भारत ने इससे बेहद अकुशल अथॉरिटेरियन तरीके से निपटा। 90 लाख से ज्यादा मामले के साथ आज भारत अमेरिका के बाद दूसरा सबसे ज्यादा प्रभावित देश है। पिछली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था पहली बार मंदी में फंस गई।
भारत आत्मनिर्भरता का राग छोड़े तो करोड़ लोग समृद्ध होंगे
लेखक ने कहा कि भारत यदि आत्मनिर्भरता का राग छोड़ दे, वैश्विक निवेशकों के साथ ओपन और पारदर्शी साझेदारी करे, तो करोड़ों लोग समृद्धि की तरफ बढेंगे। ठहरी हुई वैश्विक अर्थव्यवस्था में मांग का एक नया स्रोत पैदा होगा। पश्चिमी देशों को एशिया में एक नया भरोसेमंद पार्टनर मिल सकता है। 1990 के दशक वाली उम्मीद फिर से जग सकती है। लेकिन यदि भारत मध्य आय के चक्र में फंसा रहा, तो लोग जल्द ही यह सोचना बंद कर देंगे यह नया चीन बन सकता है।
थियानआनमेन नरसंहार के बाद चीन ने आर्थिक सुधारों को नहीं रोका
लेखक ने चीन के बारे में कहा कि जून 1989 में थियानआनमेन चौराहे पर हुए नरसंहार के बाद चीन में राजनीतिक आजादी तो नहीं आई, लेकिन देंग जियाओपिंग द्वारा शुरू किए गए आर्थिक सुधारों को रोका नहीं गया। ज्यादातर विदेशी निवेशकों को खुलकर स्वागत किया गया। चीन की अर्थव्यवस्था चल निकली। चीन 2001 में विश्व व्यापार संगठन (WTO) से जुड़ा और करीब 20 साल तक 10 फीसदी की ज्यादा दर से उसका विकास हुआ।
1990 में सुधार हुए पर प्रतिस्पर्धा बढ़ाने की योजना ताक पर पड़ी रही
लेखक ने कहा कि 1990 के देशक में व्यापार और निवेश लिबरलाइजेशन के साथ भारत में सुधारों की शुरुआत हुई। भूमि, श्रम, कैपिटल, एनर्जी और गुड्स के लिए बाजार में ज्यादा कठिन दूसरी पीढ़ी के सुधार होने बाकी रह गए थे। लेकिन 1996 के बाद मिली जुली सरकारों पर कई इंटरेस्ट ग्रुप्स ने कब्जा कर लिया, इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने की योजना ताक पर पड़ी रह गई।