कई माह के अंतराल के बाद वाराणसी (Varanshi) के दशाश्वमेध घाट (Dashashwamedh ghat) पर शनिवार को गंगा आरती (Ganga arti) शुरू कर दी गई। जिसमें श्रद्धालु भी उपस्थित हुए। अभी तक कोविड (covid) की वजह से केवल प्रतीकात्मक आरती की जा रही थी।

गंगा आरती

गंगा आरती (Ganga arti) का होता है अद्भुत नजारा

ऐतिहासिक नगरी काशी का केंद्र है गंगा का घाट। जिसमें कई पौरीणिक किस्से हैं, कई कहानियां, कई हकीकत और कई सच्चाइयां हैं। ये सब काशी की गंगा आरती की पहचान हैं। हर शाम काशी में चारों ओर घंटियां, डमरू, शंखनाद, मृदंग, झाल की गूंज सुनाई पड़ती हैं। सुंदर वेशभूषा में दिखते पुजारी.. गजब की महक के साथ उठती हुई ज्वाला.. आसमान को आगोश में लपेटता हुआ धुआं ये काशी की गंगा आरती (Ganga arti) है जो हर शाम काशी के लिए बहुत खास है। वाराणसी की गंगा आरती का नजारा अद्भुत और यादगार होता है।

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दशाश्वमेघ घाट पर होती है गंगा आरती

काशी का दशाश्‍वमेध घाट गंगा नदी के किनारे स्थित सभी घाटों में सबसे प्राचीन और शानदार घाट है। इस घाट के इतिहास पर अगर नजर डालें तो इसका इतिहास हजारों साल पुराना है। दशाश्‍वमेध का अर्थ होता है दस घोड़ों का बलिदान। किवदंतियों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव को निर्वासन से वापस बुलाने के लिए यहां एक यज्ञ का आयोजन किया था। इस कारण हर शाम यहां होती है मां गंगा की आरती (Ganga arti) जिससे एक बार बनारस शाम में फिर जागता है।

कोराना काल में केवल प्रतीकात्मक आरती की गई

गंगा सेवा निधि के सचिव, आरती के आयोजक कहते हैं, “आज 8 महीने बाद हमने ‘दैनिक गंगा आरती’ शुरू की है। पिछले 8 महीनों के दौरान केवल प्रतीकात्मक आरती की गई थी।”

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