काश्तकारों की जुबानी, उन्हीं की रामकहानी

हजारों की लागत लगाकर उगाई फूलगोभी, एक रुपये किलो भी नहीं मिल रहा भाव, फेंकनी पड़ रही

संवाददाता सनी गोस्वामी के इन्पुट्स के साथ सत्य पथिक संपादक गणेश पथिक की ग्राउंड रिपोर्ट

मीरगंज/बहेड़़ी-बरेली, सत्य पथिक न्यूज नेटवर्क: पिछले कई साल से उत्तराखंड और दिल्ली तक का पेट भरते वाले मीरगंज, बहेड़ी समेत समूचे बरेली जिले के हजारों छोटे फूलगोभी उत्पादक किसान अबकी बेहद मायूस हैं। एक तो कोरोना संकट की वजह से फूलगोभी की पूरी पैदावार दिल्ली, उत्तराखंड को एक्सपोर्ट होने के बजाय लोकल में ही डंप होकर रह गई है। दूसरे बीमारी की वजह से पौधे बढ़ने के बाद भी फूलगोभी नहीं बन पाई और खेत के खेत चौपट हो गए हैं। तीसरे बाजारों में फूलगोभी मिट्टी के मोल बिक रही है। एक रुपये किलो में भी खरीददार ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। साप्ताहिक बाजारों में नहीं बिक पाने की वजह से क्विंटल़ों गोभी फेंकनी पड़ रही है। मीरगंज तहसील के गांव नगरिया सादात के आधा दर्जन से ज्यादा परेशान काश्तकारों ने तो फूलगोभी की हरी-भरी तैयार फसल के 50 बीघा से ज्यादा खेत शुक्रवार को ट्रैक्टर चलवाकर जुतवा भी दिए हैं।


बरेली जिले की मीरगंज और बहेड़़ी तहसीलों के पांच दर्जन से ज्यादा गांवों में मौर्य और दीगर जातियों के छोटी जोतों के हजारों काश्तकार पिछले कई सालों से फूलगोभी उगाते आ रहे हैं। अच्छा मुनाफा भी कमाते थे। पिछले साल 10-15 रुपये किलो तक भाव मिलने पर इस साल भी बड़े पैमाने पर गोभी की फसल की थी। हजारों रुपये की लागत भी लगा चुके हैं लेकिन माल बहुत ज्यादा डंप होने की वजह से एक रुपये किलो के दाम पर भी खरीददार ढूंढे नहीं मिल रहे हैं।
लिहाजा मीरगंज के गांव नगरिया सादात के पूरनलाल, जानकी प्रसाद, जगदीश चंद्र मौर्य, राजेश कुमार मौर्य समेत आधा दर्जन किसानों ने ट्रैक्टर से जुतवाकर फूलगोभी की 50 बीघा से ज्यादा फसल अपने ही हाथों से उजाड़ दी। पूछने पर इन किसानों का गुस्सा फूट पड़ा। बोले-यूरिया, डीएपी घंटों लाइन में लगने के बिद भी नहीं मिल पाती है। सरकार क्या सोचती है कि यूरिया हम किसान खेतों में डालने के बजाय चाय में घोलकर पी रहे हैं? हम जैसे गरीब-छोटे किसानों के आंसू पोंछने की फिक्र इह सरकार को भी नहीं है। सोचा था कि फूलगोभी अच्छे दाम में बिकेगी तो जवान बहन की डोली इज्जत से उठवा सकेंगे। भाई की शादी भी कायदे से निपट सकेगी लेकिन दिल के सारे अरमान दिल में ही दम तोड़ चुके हैं। अब तो चिंता परिवार का पेट पालने की है। एक किसान ने बताया कि मीरगंज के कुल्छा खुर्द, चुरई, गुगई, रसूलपुर, नौसना, सिंधौली समेत दो दर्जन से ज्यादा गांवों में फूलगोभी की खेती बड़े पैमाने पर होती रही है।
सत्य पथिक संवाददाता सनी गोस्वामी ने शुक्रवार को मीरगंज के ग्राम नगरिया सादात में जाकर ग्राउंड रिपोर्ट के जरिये किसानों का दर्द जानने की कोशिश की कि क्या कुछ ऐसा हुआ जिससे काश्तकारों को अपने खेतों में तैयार गोभी की फसल को नष्ट करना पड़ गया।


सत्य पथिक से बात करते हुए किसानों ने कहा कि फूलगोभी की फसल उगाते हुए उनको उम्मीद थी कि अच्छा मुनाफा होगा लेकिन लागत तक नहीं निकाल पा रहे हैं। बाजार में इस बार 1 रुपये किलो का भाव भी नहीं मिल पा  रहा है। इसलिए खेत में ही नष्ट कर दे रहे हैं।


किसानों ने बताया कि पिछले साल फरवरी में फूलगोभी 10 से 15 रुपये किलो बिकी थी। इसी उम्मीद से इस बार भी सबने यही सोचकर गोभी की फसल उगाई थी कि इस साल भी फसल के अच्छे दाम मिलेंगे लेकिन इस बार तो फूलगोभी की फसल उगाकर हम लोग  बर्वाद हो गए हैं।

उधर, बहेड़़ी तहसील के गुड़वारा, हसनपुर, जाफरा, गुनाह हट्टू, कनमन समेत.दो दर्जन से ज्यादा गांवों में फूलगोभी की खेती बड़े पैमाने पर होती है। इन गांवों की फूलगोभी पड़ोसी उत्तराखंड के कई जिलों में थालियों में सजती रही है लेकिन कोरोना की मार के चलते उत्तराखंड में गोभी पहुंच नहीं पा रही है। यहीं डंप होकर रह गई है। इस वजह से यहां के किसानों को भी एक रुपये किलो का भाव भी मुश्किल से ही मिल पा रहा है। गुड़वारा, गुनाह हट्टू के कई काश्तकारों का कहना था कि अबकी पौधे बढ़े तो खूब हैं लेकिन बीमारी के प्रकोप के चलते फूल बने ही नहीं हैं।

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