पीलीभीत/Wild Life/सत्य पथिक न्यूज नेटवर्क: दबंगों के बेशुमार अवैध कब्जों के चलते बेशकीमती वन्य संपदा को संजोए रखने वाला Pilibhit Tiger Reserve (PTR) बहुत तेजी से सिकुड़ रहा है। संरक्षित जंगल का दायरा काफी घट जाने से PTR के बाघ आबादी में घुसकर लोगों को मारकर खुद भी बेमौत मर रहे हैं। इसके बावजूद जंगल की जमीन पर हो रहे अवैध कब्जों को रोकने में पीटीआर प्रशासन (वन विभाग) पूरी तरह नाकाम साबित हो रहा है। शारदा नदी के पार तो जंगल की 70 फीसदी जमीन दबंगों के चंगुल में फंसी हैं।



पीलीभीत टाइगर रिजर्व के अंतर्गत शारदा नदी के पार ढकिया ताल्लुके महाराजपुर, रमनगरा, गुन्हान और बिजोरी खुर्दकला में वन विभाग की जमीन है। इन गांवों की PTR की 70 फीसदी जमीन पर अवैध कब्जे हैं। आरोप है कि दबंग वनकर्मियों के संरक्षण में ही सरकारी जमीन पर कब्जा कर वर्षों से खेती कर रहे हैं। दरअसल, सरकार ने वर्ष 1965 से 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान से आए बंगाली विस्थापित परिवारों को शारदा नदी के पार पांच-पांच एकड़ कृषि भूमि और आवास बनवाकर जिला पुनर्वासन विभाग के माध्यम से आवंटित किए थे। यह भूमि वन विभाग की थी। इस बीच यहां बाढ़ आ गई। इसके बाद वर्ष 1999 में वन विभाग ने भूमि को राजस्व अभिलेखों में दर्ज करा लिया। इसके बावजूद यहां एक बड़े इलाके में जंगल की जमीन पर कब्जा है। जब भी मामला सुर्खियों में आता है तब वन और राजस्व विभाग के अफसर संयुक्त सीमांकन का बहाना बनाकर मामले को रफा-दफा कर देते हैं।

आला अफसरों तक को कर दिया गुमराह

पिछले दिनों गांव ढकिया ताल्लुके महाराजपुर में PTR के स्थानीय अधिकारियों ने विभागीय आला अफसरों को 140 एकड़ वन भूमि से अतिक्रमण हटवाकर दुबारा कब्जा ले लेने की झूठी रिपोर्ट भेजकर उन्हें भी गुमराह कर दिया है। असलियत यह है कि उच्चाधिकारियों के दबाव में स्थानीय वनकर्मी जेसीबी लेकर तो पहुंचे, खुदाई भी शुरू की, मगर कुछ मिनटों में ही कब्जेदारों ने हंगामा कर कार्रवाई को रुकवा दिया। यहां आज भी सैकड़ों एकड़ जंगल की जमीन पर अवैध कब्जेदारों की गेहूं की फसल लहलहा रही है।


झोंपड़ियां डालकर हथिया ली जमीन

रमनगरा में बंगाली परिवार प्रयासरत थे कि उनको भूमि पर कब्जा मिल जाए, मगर वन भूमि दर्ज होने से ऐसा नहीं हो सका था। इस बीच कुछ लोगों ने झोंपड़ियां डालकर कब्जा करना शुरू कर दिया। रेंजर ने तीन कब्जेदारों के खिलाफ विभागीय केस दर्ज करते हुए दो को जेल भेज दिया, मगर झोंपड़ियां बरकरार रहीं। बताते हैं कि यहां करीब 400 एकड़ जंगल की जमीन है। काफी हिस्से पर कब्जे हो चुके हैं तो कुछ स्थानों पर जंगल झाड़ियां साफ कर कब्जे के प्रयास चल रहे हैं। बताते हैं कि दबंग कब्जेदारों को राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है। स्थानीय वनकर्मी बहती गंगा में हाथ धोने से नहीं चूक रहे हैं।

बाढ़ ने काटी तो कब्जेदार करने लगे खेती

रमनगरा जैसी स्थिति बिजौरी खुर्द कलां के जंगल की भी है। कुछ साल पहले बाढ़ से उफनाई शारदा नदी ने किसानों की जमीन काटने के साथ जंगल का भी सफाया कर दिया था। नदी ने जब जमीन छोड़ी तो वन कर्मियों से मिलीभगत कर 30 एकड़ में कब्जा कर गेहूं की फसल बो दी गई। टाइगर रिजर्व के कई और इलाकों में भी अवैध कब्जे हैं। ऐसे में यदि राजनीतिक संरक्षण और विभागीय सांठगांठ से पीटीआर की जंगल जमीन पर अवैध कब्जे होते रहे तो फिर बाघ आबादी में घुसकर लोगों को मारते और खुद भी मरते ही रहेंगे। बाघों को संरक्षित करना और किसान-मजदूरों की जानें बचाना तब शायद नामुमकिन ही हो जाएगा।

दो कब्जेदारों को जेल भेजा, बाकी पर भी कार्रवाई

शारदा नदी के पार वन भूमि पर अतिक्रमण के मामले में दो आरोपियों को जेल भेजा जा चुका है। इसके अलावा अन्य कब्जेदारों पर भी कार्रवाई की गई है। वन भूमि पर अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।-दिनेश कुमार गोयल, वन क्षेत्राधिकारी, बराही रेंज

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