स्मृतिशेष- प्रो. भगवान शरण भारद्वाज: हिंदी-संस्कृत साहित्य के जीवंत विश्वकोश किंवा गीर्वाणयुग का गोलोकगमन 😢
ऋषिता के युगभाष्य थे वे। पूरे पच्चीस बरस विभागाध्यक्ष रहे और कुछ समय कार्यवाहक प्राचार्य भी। पर पदलिप्सा न व्यापी कभी। इसे वे थैंकलेस जॉब बोलते रहे और वरिष्ठतम पाले…