लीलौर झील रामनगर (आंवला) से मुदित सिंह के साथ वरिष्ठ पत्रकार गणेश पथिक
बरेली, सत्य पथिक-Exclusive:
महाभारतकालीन प्रसिद्ध लीलौर झील का यक्ष एक बार फिर प्रश्न पूछ रहा है लेकिन सामने युधिष्ठिर नहीं, वायदाफरामोश सरकार और भ्रष्ट-लापरवाह-कामचोर अधिकारियों की फौज है। लेकिन जाहिराना तौर पर उत्तर अनुत्तरित ही हैं। सवाल है कि लोग मेरी पौराणिक लीलौर झील के अस्तित्व को ही खतरे में क्यों झोंक रहे हैं?
पिछले काफी लंबे समय से लीलौर झील के सुंदरीकरण को लेकर विभिन्न योजनाएं बनाई गईं और उनको धरातल पर लाने की कोशिशें भी हुईं किंतु सब ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित हुई हैं। वर्तमान में झील का क्षेत्र काफी छोटा कर दिया गया है। चारों ओर बनाई गई सड़क अब झील में पानी भरने में बाधक बन रही है। इस वजह से लीलौर झील का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। झील की जमीन पर सड़क बनने के कारण बारिश का पानी इसमें नहीं आ पा रहा है और झील सूख रही है। झील के अंदर की मिट्टी को खोदकर सड़क बनाने में उपयोग कर दिया गया, सड़क की ऊंचाई बढ़ा दी गई और झील का आकार भी छोटा कर दिया गया है।
हालत यह है कि झील को बारहों महीने पानी से लबालब रखने वाला जमीन का हिस्सा सड़क के उस पार धकेल दिया गया है। लिहाजा बारिश का पानी झील में नहीं पहुंच पा रहा है। बारिश अथवा अन्य पानी जो पूरी झील को भर के रखता था वह अब झील के अंदर नहीं आ पा रहा है। आसपास गांवों के लोगों ने झील के अंदर की चिकनी मिट्टी को खोदकर गहरे-गहरे गड्ढे कर दिए हैं जिससे झील का प्राकृतिक स्वरूप बिगड़ गया है। झील के अंदर रेतीली मिट्टी आ जाने के कारण लंबे समय तक पानी नहीं रुक पा रहा है और झील अपना प्राकृतिक स्वरूप खोती जा रही है।

जानकी देवी इंटर कॉलेज फतेहगंज पश्चिमी में वरिष्ठ लिपिक और शिक्षणेत्तर कर्मचारी संघ के प्रांतीय प्रतिनिधि अमित कुमार सिंह ने प्रदेश सरकार और जनप्रतिनिधियों से पौराणिक लीलौर झील का अस्तित्व बचाए रखने के लिए सड़क हटाकर ओवरब्रिज बनवाने की मांग की है। ताकि झील के पानी को किसी प्रकार की रुकावट ना झेलनी पड़े। अमित बताते हैं कि मिट्टी खोदकर निकालने वाले ग्रामीण बिना सोचे-समझे झील के स्वरूप को बिगाड़कर भारी विनाश कर रहे हैं। ऐसे लोगों को जागरूक करने के लिए भी हम लोग अपने स्तर से कोशिश कर रहे हैं।
जानकारों की मानें तो यदि सरकार और जनप्रतिनिधि ठोस पहल करें तो चाहे तो अभी भी झील का वही स्वरूप लौट सकता है जो वर्ष 1901 में अंग्रेजों के शासन काल में आसपास की ग्राम पंचायतों को मोटा राजस्व देती थी। आज उसके पास कुछ भी नहीं है। पौराणिक लीलौर झील बरेली जिले में पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन सकती है। झील के आसपास का क्षेत्र अहिच्छत्र जैन धर्म का प्राचीन आस्था केंद्र है।
लोग बताते हैं कि झील को सही ढंग से विकसित किया जाए तो यहां पर नौकायन बड़े स्तर पर हो सकता है। इसके आसपास छोटे गेस्ट हाउस और दुकानें भी बनवाई जा सकती हैं। ऐसा हो जाए तो झील के आसपास की कई ग्राम पंचायतों को आत्म निर्भर और समृद्ध बनाने और सैकड़ों स्थानीय बेरोजगारों को उनके घरों के आसपास ही रोजगार का बेहतरीन जरिया मिल सकेगा।