लखनऊ/Panchayat Chunav/सत्य पथिक न्यूज नेटवर्क: उत्तर प्रदेश में अगले कुछ दिनों में पंचायत चुनाव होने वाले हैं। ग्राम पंचायत में प्रधान पद किस जाति के लिए आरक्षित होगा, सरकार के इस फैसले का सभी उम्मीदवार बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। ताजा खबर है कि इस बार कोई भी पंचायत जातिगत आरक्षण से वंचित नहीं रह पाएगी। प्रदेश के पंचायतीराज विभाग द्वारा इस संबंध में तैयार प्रस्ताव को कैबिनेट बाई सर्कुलेशन ने मंजूरी दे दी है। अगले एक-दो दिन में पंचायतों के आरक्षण संबंधी शासनादेश भी जारी हो जाएगा।
नए प्रस्ताव में साल 2015 में हुए पिछले पंचायत चुनाव में तत्कालीन सपा सरकार द्वारा किए गए प्रावधान को हटाया गया है। अब तक चक्रानुक्रम आरक्षण के कारण ऐसी कई पंचायतें बची रह गईं, जिन्हें न ओबीसी के लिए आरक्षित किया जा सका और न ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित करने का काम किया गया। इस बार चक्रानुक्रम के तहत यह नया फार्मूला अपनाया जाएगा।
बता दें कि पुराने प्रावधान के तहत सूबे के चार जिलों गोण्डा, सम्भल, मुरादाबाद और गौतमबुद्धनगर में कानूनी अड़चनों के कारण परिसीमन नहीं हो सका था लिहाजा 2010 के पंचायत चुनाव का आरक्षण ही लागू हुआ था। इस बार इन चारों जिलों में खास यह है कि इनमें नए सिरे से परिसीमन करवाया गया है। इसी आधार पर अब इन चारों जिलों में नए सिरे से आरक्षण की व्यवस्था लागू की जाएगी। इस बार सूबे के सभी 75 जिलों में एक साथ पंचायतों के वार्डों के आरक्षण की नीति लागू होगी। यह भी देखा जाएगा कि साल 1995 से अब तक हुए पांच त्रि-स्तरीय पंचायत चुनावों में ऐसी कौन सी ग्राम, क्षेत्र, जिला पंचायतें हैं, जहां अभी तक जातिगत आरक्षण लागू नहीं किया जा सका है। ऐसी सभी पंचायतों को इस बार प्राथमिकता के आधार पर आरक्षण के दायरे में लाया जाएगा।
जानिए, जानकारों की राय
जानकारों की मानें तो सरकार के इस नए फैसले से अब वो पंचायतें जो पहले एससी के लिए आरक्षित होती रहीं और ओबीसी के आरक्षण से वंचित रही हैं, अब ओबीसी के लिए आरक्षित होंगी। इसी तरह ओबीसी के लिए आरक्षित होती पंचायतें अब एससी के लिए आरक्षित की जाएंगी। जो पंचायतें बच जाएंगी, उन्हें आबादी के घटते अनुपात में चक्रानुक्रम के अनुसार सामान्य वर्ग के लिए छोड़ दिया जाएगा।