लोन टू वैल्यू रेशियो (LTV Ratio) वह प्रॉपर्टी प्रपोर्शन है, जिसके आधार पर कर्ज (Loan) दिया जाता है। रेशियो का बैंक्स (Banks), हाउसिंग फाइनेंस कंपनियां (HFCs), नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियां (NBFCs) आकलन करते हैं। कर्जदाता तय करते हैं कि लोन अमाउंट के हिसाब से प्रॉपर्टी की वैल्यू (Property Value) क्या है।

देश में ज्यादातर लोग सरकारी-प्राइवेट बैंक (PSBs & Private Banks) या दूसरे वित्तीय संस्थानों (Financial Institutions) से लोन (Loan) लेते हैं। इसमें कर्जदाता (Lenders) सबसे पहले तय करता है कि अप्लाई करने वाले व्यक्ति को कितने फीसदी लोन दिया जाना है। इसके लिए सबसे पहले व्यक्ति की सालाना इनकम (Annual Income) देखी जाती है। इसके बाद उसका क्रेडिट स्कोर (Credit Score) और लोन टू वैल्यू रेशियो (LTV Ratio) का आकलन किया जाता है। इसके बाद तय किया जाता है कि अप्लाई करने वाले को कितना डाउन पेमेंट करना है और कितना लोन मंजूर होगा।
ये है LTV ratio का फार्मूला
लोन देने वाले संस्थान एलटीवी रेशियो निकालने के लिए खास फार्मूला का इस्तेमाल करते हैं. अगर आपने एक करोड़ रुपये का मकान लिया है और आपका एलटीवी रेशियो महज 70 फीसदी है, तो आपको 70 लाख से ज्यादा का लोन नहीं मिलेगा.
(उधार लिया गया अमाउंट/प्रॉपर्टी की वैल्यू) X 100 = LTV रेशियो

ये है आरबीआई की गाइडलाइनलोन देने वाले संस्थानों के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की गाइडलाइन है कि 30 लाख या उससे कम के होम लोन में एलटीवी रेशियो 90 फीसदी तक जा सकता है. इसका मतलब साफ है कि खरीदार को प्रॉपर्टी के लिए 10 फीसदी कीमत जेब से देनी होगी और बाकी कीमत फाइनेंस हो जाएगी। वहीं, 30 लाख से 75 लाख तक पर यह रेशियो 80 फीसदी और 75 रुपये से ज्यादा के अमाउंट पर 75 फीसदी एलटीवी रेशियो होता है। RBI की गाइडलाइन के मुताबिक, लेंडर होम लोन का रेशियो 75 से 90 फीसदी तक रख सकता है। अगर उधार लेने वाला व्यक्ति भविष्य में लोन चुकाने की स्थिति में नहीं होता तो इस रेशियो से अपना एनपीए बढ़ने से रोकते हैं।
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